शिव पंचाक्षर स्तोत्र भगवान शिव की स्तुति के लिए लिखा गया है। इसमें भगवान शिव के स्वरूप एवं गुणों का बखान किया गया है, साथ ही भगवान शिव की वंदना की गई है।  इस स्तोत्र के रचयिता श्री आदिगुरु  शंकराचार्य हैं, जो एक महान शिव भक्त, एकेश्वरवादी और धार्मिक परोपकारी थे। सनातन धर्म ग्रंथों और विद्वानों के अनुसार वे भगवान शिव के अवतार थे। उनके बारे में कहा जाता है-

अष्टवर्षेचतुर्वेदी, द्वादशेसर्वशास्त्रवित् षोडशेकृतवान्भाष्यम्द्वात्रिंशेमुनिरभ्यगात्।

अर्थात आठ वर्ष की आयु में वे चारों वेदों के स्वामी थे, बारह वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों में पारंगत हो गए , सोलह वर्ष की आयु में शंकरभाष्य पारित कर दिया और बत्तीस वर्ष की आयु में शरीर त्याग दिया।

 शिवपंचाक्षर  स्तोत्र पंचाक्षरी मंत्र नमः शिवाय पर आधारित है।


पंचाक्षर मंत्र क्या है ?

कहा जाता है कि भगवान शिव ने समस्त मानव जाति के कल्याण के उद्देश्य से स्वयं पंचाक्षर मंत्र ‘नमः शिवाय’ की उत्पत्ति की। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसे सबसे पहला मंत्र माना जाता है। इसकी मदद से सभी प्रकार की सिद्धियों को प्राप्त किया जा सकता है। इसके जाप से मनुष्य के किए गए पापों का नाश भी  होता है। हम जानते हैं की सृष्टि पांच तत्वों से मिलकर बनी है – पृथ्वी, अग्नि, जल, आकाश और वायु। 

पंचाक्षर मंत्र "नमः शिवाय" में
न - पृथ्वी तत्वको
म  – जल तत्व को
शि  - अग्नि तत्व को
वा - वायु तत्व और
य  – आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है
न, म, शि, वा और य
अर्थात् नम: शिवाय।

शिव के पंचाक्षर मंत्र से सृष्टि के पांचों तत्व नियंत्रित होते हैं। इसलिए यह पंचाक्षर स्तोत्र शिवस्वरूप है।

शिव पंचाक्षर मंत्र के जप से लाभ।

 पंचाक्षर मंत्र अल्पाक्षर तथा अति सूक्ष्म है मगर इसमें अनेक अर्थ समाये हुए हैं। यह मंत्र समस्त वेदों का सार है। यह मंत्र मुक्ति और मोक्ष देने वाला है। इस मंत्र से कई प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इस मंत्र के प्रभाव से व्यक्ति  को लौकिक, पारलौकिक सुख, इच्छित फल तथा पुरुषार्थ की प्राप्ति हो जाती है। इस मंत्र के श्रद्धापूर्वक जाप से ही मनुष्य को पापों से मुक्ति मिल जाती है।

शिव पंचाक्षर स्तोत्र एवं अर्थ।

(१) नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे “न” काराय नम: शिवाय।।


(२) मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे”म” काराय नम: शिवाय।।


(३) शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषध्वजाय तस्मै “शि” काराय नम: शिवाय:।।


(४) वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै “व” काराय नमः शिवाय ॥


(५) यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै “य” काराय नम: शिवाय।।


पंचाक्षरमिदं पुण्यं यःपठेच्छिवसंनिधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

अर्थ – शिव पंचाक्षर स्तोत्र

(१) नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय  भस्मांग रागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै "न" काराय नमः शिवायः॥
अर्थ:
नागेंद्रहाराय – हे शंकर, आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं।
त्रिलोचनाय – हे तीन नेत्रों वाले (त्रिलोचन)
भस्मांग रागाय – आप भस्म से अलंकृत है
महेश्वराय – महेश्वर है
नित्याय – नित्य (अनादि एवं अनंत) है और
शुद्धाय – शुद्ध हैं
दिगंबराय – अम्बर को वस्त्र सामान धारण करने वाले दिगम्बर
तस्मै न काराय – आपके “न” अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को
नमः शिवाय  – हे शिव, नमस्कार है

भावार्थ:
जिनके कंठ साँपों के हार से सुशोभित है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिन महेश्वर का अलंकार है, जो शुद्ध है और जिनका न आदि है और न ही अंत है, दिशाएं ही जिनके वस्त्र हैं, उन अविनाशी “न” कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।
(२) मंदाकिनी सलिलचंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय। मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नमः शिवायः॥
अर्थ:
मंदाकिनी सलिल – गंगा की धारा द्वारा शोभायमान
चंदन चर्चिताय – चन्दन से अलंकृत एवं
नंदीश्वर प्रमथनाथ – नन्दीश्वर एवं प्रमथ के स्वामी (प्रमथ – शिव के गण)
महेश्वराय – महेश्वर
मंदारपुष्प – आप सदा मन्दार पर्वत से प्राप्त पुष्पों एवं
बहुपुष्प – बहुत से अन्य स्रोतों से प्राप्त पुष्पों द्वारा
सुपूजिताय – पुजित है
तस्मै म काराय – हे “म” अक्षर धारी
नमः शिवाय – शिव आपको नमन है

भावार्थ:
 मन्दाकिनी (गंगाजल) और चन्दन से जिनकी अर्चना होती है, मन्दार पुष्प तथा अन्य पुष्पों से जिनकी सुंदर पूजा हुई है, उन नन्दी के अधिपति और प्रमथगणों के स्वामी महेश्वर “म” कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।
(३) शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।श्री नीलकंठाय वृषध्वजाय तस्मै" शि"काराय नमः शिवायः॥
अर्थ:
शिवाय – हे शिव,
गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय – माँ गौरी के कमल मुख को सूर्य के समान तेज प्रदान करने वाले,
दक्षाध्वरनाशकाय – राजा दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करने वाले
श्री नीलकंठाय – हे नीलकण्ठ
वृषध्वजाय – वृष के चिन्ह वाली ध्वजा धारण करने वाले
तस्मै शि काराय – आपके “शि” अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को
नमः शिवाय  – हे शिव, नमस्कार है

भावार्थ:
जो कल्याण स्वरूप हैं, पार्वती जी के कमल स्वरूपी मुख को प्रसन्न करने के लिये जो सूर्य स्वरूप हैं, जो राजा दक्ष के यज्ञका नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा मे बैल का चिन्ह है, उन शोभाशाली श्री नीलकण्ठ ” शि ” कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।
(४) वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय।चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै "व" काराय नमः शिवाय ॥
अर्थ:
वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य – वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि
मुनींद्र देवार्चित शेखराय – मुनियों द्वारा एवं देवगणो द्वारा पुजित देवाधिदेव
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय – जिनके, तीन नेत्र  सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि के समान हैं
तस्मै "व" काराय – आपके “व” अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को
नमः शिवाय – हे शिव नमस्कार है

भावार्थ:
वसिष्ठ, अगस्त्य, और गौतम आदि श्रेष्ठ ऋषि मुनियोंने तथा देवताओं ने  जिनके मस्तक की पूजा की है। चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र है, उन “व” कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।
(५) यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवाय ॥
अर्थ:
यक्षस्वरूपाय – हे यज्ञ स्वरूप,
जटाधराय – जटाधारी शिव
पिनाकहस्ताय – पिनाक को धारण करने वाले (पिनाक – शिव का धनुष)
सनातनाय – आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन है
दिव्याय देवाय दिगंबराय – हे दिव्य अम्बर धारी शिव
तस्मै य काराय – आपके “य” अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को
नमः शिवाय  – हे शिव, नमस्कार है

भावार्थ:
जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथ मे पिनाक (धनुष) है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव “य” कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यःपठेच्छिवसंनिधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
अर्थ:
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः – जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का
पठेत् शिव सन्निधौ – नित्य ध्यान करता है
शिवलोकमवाप्नोति – वह शिव के पुण्य लोक को प्राप्त करता है
शिवेन सह मोदते – तथा शिव के साथ सुख पूर्वक निवास करता है

भावार्थ:
जो शिव के इस पवित्र पंचाक्षर मंत्र का नित्य पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त होता है और शिवजी के साथ आनन्दित होता है।|                                                 
|इति श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम्||