हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि बड़े ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है। वर्ष भर में हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि आती है, जिसे मासिक शिवरात्रि कहा जाता है, लेकिन फाल्गुन मास में पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है क्योंकि इसे भगवान शिव का सबसे प्रिय दिन माना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से शिव भक्तों के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। महाशिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार, महाशिवरात्रि के पावन दिन ही शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था, इसलिए महाशिवरात्रि भगवान् शिव और माता पार्वती के विवाह के वर्षगांठ के रूप में बड़े ही हर्षोउल्लास से मनाई जाती है। भगवान् शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए महाशिवरात्रि के दिन भक्तजन उपवास रखतें हैं ,शिवलिंग का अभिषेक करते हैं, और पूरी रात जागरण कर भगवान शिव की आराधना करते हैं।
महाशिवरात्रि का धार्मिक महत्व
भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। इस दिन को भगवान् शिव और माता पार्वती के मिलन के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से भगवान शिव के साथ माँ पार्वती का भी आशीर्वाद मनुष्य को प्राप्त होता है
समुद्र मंथन और नीलकंठ की कथा : हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया, तो उसमें से हलाहल विष भी निकला, जो सम्पूर्ण सृष्टि को नष्ट कर सकता था। सृष्टि की रक्षा करने के लिए इस विनाशकारी विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका गला नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए। ये घटनाएं भी महाशिवरात्रि के दिन घटित हुई थी।
भगवान शिव का तांडव नृत्य : एक अन्य मान्यता के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने अपनी प्रसन्नता में तांडव नृत्य किया था, जो सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार का प्रतीक माना जाता है। इस नृत्य से जीवन में संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
मोक्ष की प्राप्ति का अवसर : महाशिवरात्रि को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन जो व्यक्ति सच्चे मन से भगवान् शिव की पूजा करता है, उसे उसके समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय महत्व
ग्रह-नक्षत्रों की विशेष स्थिति: महाशिवरात्रि के दिन ग्रहों की विशेष स्थिति होती है, जिससे साधना और ध्यान का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी की ऊर्जा विशेष रूप से सक्रिय होती है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति में सहायता मिलती है।
शरीर और मन की शुद्धि: ज्योतिषीय दृष्टिकोण से उपवास रखने से शरीर विषमुक्त होता है और ध्यान व साधना करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। महाशिवरात्रि का दिन आत्मसंयम और ध्यान के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
रात्रि जागरण का महत्व: वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, महाशिवरात्रि पर पूरी रात जागरण करने से मन और मस्तिष्क की ऊर्जा को नियंत्रित किया जाता है, जिससे मनुष्य का आत्मिक विकास संभव होता है। इस दिन को ध्यान और साधना के लिए अत्यंत ही लाभकारी माना जाता है।
महाशिवरात्रि का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
महाशिवरात्रि केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं है, बल्कि यह समाज में एकता, भक्ति और आध्यात्मिकता का सन्देश भी देता है। इस दिन मंदिरों और शिवालयों में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। शिव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है और भक्तों की भीड़ उमड़ती है। यह पर्व समाज में धार्मिक सहिष्णुता, दान-पुण्य और भक्ति की भावना को मजबूत करता है।
महाशिवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथाएँ
शिकारी की कथा : शिवपुराण के अनुसार, किसी समय में एक शिकारी था, जिसका नाम गुरुद्रुह था। एक दिन वह जंगल में शिकार करने गया,वह दिन महाशिवरात्रि का था उसे यह बात पता नहीं थी। शिकार करने के क्रम में रात होने पर वह एक बेल के पेड़ पर चढ़ गया। उस पेड़ के नीचे ही शिवलिंग था। उससे शिकार करते हुए अनजाने में ही पेड़ से बेल के पत्ते टूटकर शिवलिंग पर गिर गए, और जल के पात्र से जल की कुछ बूँदें शिवलिंग पर जा गिरी। शिवरात्रि के दिन अनजाने में हुए पूजन से भगवान शिव बहुत ही प्रसन्न हुए और शिकारी को मोक्ष प्रदान किया।
महाशिवरात्रि की पूजा विधि
महाशिवरात्रि के दिन विशेष रूप से शिवलिंग का पूजन किया जाता है। इस दिन शिवभक्त उपवास रखते हैं और शिवलिंग की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। महाशिवरात्रि की पूजाविधि में पहला है –
तन और मन को पवित्र करना : महाशिवरात्रि के दिन सबसे पहले प्रातः काल उठ कर अपने नित्य कर्मों से निवृत होकर स्नान करके,स्वच्छ वस्त्र धारण करके शरीर को शुद्ध करना चाहिए। फिर उपवास का संकल्प लेना चाहिए।
शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक: पंचामृत ( गाय का दूध,गाय का दही,गाय का घी,शहद और गुड़ या चीनी का मिश्रण ) और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। भगवान भोलेनाथ को बेलपत्र, धतूरा, आक के फूल और पत्ते, शमी के फूल, शमी के पत्ते, भांग, श्वेत पुष्प, भस्म, गुलाल आदि अर्पित करने चाहिए।
भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा और भांग अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं।
धूप-दीप और नैवैद्य अर्पित करना : भगवान शिव को धूप, दीप और प्रसाद भी अर्पित करना चाहिए। शिवरात्रि में भगवान् शिव को बेर चढ़ाने की भी मान्यता है। कहते हैं शिवरात्रि के व्रत का पारण बेर से ही किया जाता है।
रात्रि जागरण : इस दिन पूरी रात जागरण करना चाहिए। नमः शिवाय मंत्र का जाप, शिव स्तुति, शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए। शिवरात्रि की कथा भी सुननी चाहिए । वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, महाशिवरात्रि पर पूरी रात जागरण करने से मन और मस्तिष्क की ऊर्जा को नियंत्रित किया जाता है, जिससे आत्मिक विकास संभव होता है। महाशिवरात्रि का दिन ध्यान और साधना की दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
दान-पुण्य : इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को यथासंभव भोजन और वस्त्र दान करने का भी विशेष महत्व होता है।
।। ॐ नमः शिवाय।।