हिन्दू धर्म में नवरात्र का विशेष महत्व है। नवरात्र का उत्सव हर साल मनाया जाता है। एक साल में नवरात्री चार बार आती है जो हिंदी महीने के अनुसार क्रमशः चैत्र ,आषाढ़ ,आश्विन और माघ (मार्गशीर्ष)  में मनाई जाती है। नवरात्र में माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा विशेष प्रकार से की जाती है।

माँ दुर्गा के नौ रूप

आज हम आपको माँ दुर्गा के हर एक रूप का विस्तार से वर्णन करेंगे व उनकी महत्ता को समझाएंगे।

1. पहला – माँ शैलपुत्री

अपने पूर्व जन्म में माँ शैलपुत्री ने माता सती के नाम से जन्म लिया था जो भगवान महादेव की पत्नी थी। अपने पिता दक्ष के द्वारा शिव का अपमान देखकर उन्होंने अग्नि कुंड मेंअपना शरीर त्याग दिया था । इसके बाद  वे अगले जन्म में हिमालय पर्वत की पुत्री के रूप में जन्म लिया था ,इसलिये उन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। इनका वाहन वृषभ होता हैं तथा दोनों भुजाओं में त्रिशूल और कमल का पुष्प होता हैं। माँ श्वेत वस्त्र धारण किये हुए व हल्की मुस्कान लिए हुए रहती हैं। इनकी पूजा करने से मन को स्थिरता मिलती हैं व एकाग्रता बढ़ती  है।

2. दूसरा – माँ ब्रह्मचारिणी

नवदुर्गा के द्वितीय रूप को  माँ ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है जो भक्तों को तपस्या तथा वैराग्य का भाव दिखाती है। इनके नाम का अर्थ ही हमेशा ब्रह्म में लीन रहने से हैं जिससे भक्तों के अंदर त्याग, सदाचार व तप की भावना का विकास होता है। माँ के दाहिने हाथ में जप माला व बाए हाथ में कमंडल होता है। वे सीधी खड़ी रहती है तथा तपस्या पर बल देती है। देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से भक्तों में ध्यान एकत्रित करने में सहायता मिलती है तथा विश्वास में बढ़ोत्तरी होती है।

3. तीसरा – माँ चंद्रघंटा

नवदुर्गा का तृतीय रूप को माँ चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। इनका जन्म ही पापियों का नाश करने तथा भक्तों को अभयदान देने के उद्देश्य से हुआ था। माँ का रूप अतिविनाशकारी है जिनकी 10 भुजाएं हैं। अपनी 10 भुजाओं में माँ ने विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किये हुए हैं तथा उनका वाहन शेर है। माँ चंद्रघंटा की पूजा करने से भक्तों के मन में किसी प्रकार की शंका तथा भय दूर होता हैं। साथ ही हमारे अंदर वीरता व साहस की बढ़ोत्तरी होती हैं।

4. चौथा – माँ कूष्मांडा

नवदुर्गा का चतुर्थ रूप को  माँ कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है जिनके द्वारा इस ब्रह्मांड की रचना हुई थी। ये हमेशा ब्रह्मांड के मध्य में स्थित रहती हैं। माँ कूष्मांडा में सूर्य के ताप को सहन करने की क्षमता  है । इनकी आठ भुजाएं होने के कारण इन्हें अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। माँ का वाहन सिंह होता हैं तथा ये अपनी भुजाओं में विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों के साथ-साथ कमल का पुष्प, कमंडल, जपमाला व अमृत कलश लिए हुए रहती हैं। माँ की पूजा करने से भक्तों के सभी रोग दूर होते हैं तथा वे मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।

5. पाँचवाँ – माँ स्कंदमाता

माँ दुर्गा के पंचम रूप को माँ स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है जो माता पार्वती का ही एक रूप है। इन्हें कार्तिकेय (स्कंद )की माता कहा जाता हैं इसलिये इनका नाम स्कंदमाता है। ये हमेशा अपने एक हाथ से कार्तिकेय के छोटे रूप को गोद में लिए हुए रहती है। इनकी चार भुजाएं हैं जिनमें दो भुजाओं में कमल पुष्प तथा एक भुजा वर मुद्रा में रहती हैं। देवी स्कंदमाता की पूजा करने से भक्तों के मन से बुरी प्रवत्तियों का नाश होता है  तथा अच्छे विचारों का सृजन होता है। लोग संतान प्राप्ति की इच्छा से भी इनकी पूजा करते हैं।

6. छठा – माँ कात्यायनी

माँ दुर्गा के छठे रूप को माँ कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। इनका जन्म एक महत्वपूर्ण उद्देश्य के लिए हुआ था। भगवान् ब्रह्मा , भगवान्  विष्णु , तथा भगवान् शिव ने अपनी शक्ति को एकत्रित कर माँ का निर्माण किया था । माँ कात्यायनी ने देवताओं की रक्षा करने के उद्देश्य से महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। इनकी चार भुजाएं हैं जिनमे से दो भुजाएं वर मुद्रा तथा अभय मुद्रा में हैं तथा बाकि दो भुजाओं में कमल पुष्प तथा खड़ग है। माँ कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों के संकट दूर होते हैं तथा शत्रु का भय नही रहता। कुवारी कन्याओं को माँ कात्यायिनी की पूजा करने से सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।

7. सातवां – माँ कालरात्रि

माँ दुर्गा का सातवाँ रूप माँ कालरात्रि हैं जो दिखने में बहुत भयानक तथा अंधकारमय हैं । इनकी उत्पत्ति असुरों का वध करने के उद्देश्य से हुई थी। जब माँ दुर्गा ने शुंभ-निशुंभ राक्षसों का वध कर दिया तब रक्तबीज एक ऐसा राक्षस था जिसका वध होने के बाद भी  रक्त की बूंदे भूमि पर गिरते ही उतने ही नए रक्तबीज राक्षस और पैदा हो जाते थे। तब माँ ने कालरात्रि रूप  लिया  और राक्षस के रक्त की बूंदे भूमि पर गिरने से पहले ही पीकर उसका अंत किया था। माँ का रूप एक दम भयानक हैं जिनके गले में विद्युत के समान चमकती माला हैं। माँ ने हाथों में खड्ग व वज्र धारण किये हैं तथा अन्य दो भुजाएं वर मुद्रा व अभय मुद्रा में हैं। माँ की पूजा करने  से भक्तों का रात्रि भय, अंधकार भय, जल भय व अग्नि भय दूर हो जाता है ।

8. आठवां – माँ महागौरी

माँ दुर्गा के आठवें रूप को माँ महागौरी के नाम से जाना जाता हैं जो अत्यंत मनोहर तथा सुख देने वाला है। माँ का रंग श्वेत होता है तथा ये श्वेत वस्त्रों व आभूषणों को धारण किये हुए रहती हैं। इसलिये ही इनका नाम महागौरी पड़ा था। माँ की चार भुजाएं हैं जिनमें एक में त्रिशूल व दूसरे में डमरू है तथा बाकि दो भुजाएं वर मुद्रा व अभय मुद्रा में है। माँ की पूजा करने से भक्तों को सुख की प्राप्ति होती हैं। विवाहित स्त्रियों के सुहाग की रक्षा होती है तो अविवाहित कन्याओं के लिए विवाह के योग बनते हैं।

9. नौवां – माँ सिद्धिदात्री

माँ दुर्गा का अंतिम रूप माँ सिद्धिदात्री  का है जो अत्यंत महत्वपूर्ण  है क्योंकि यह मनुष्य को सभी आठों सिद्धियाँ प्रदान करके उसका उद्धार करता है। इसके पश्चात मनुष्य के मन में कोई इच्छा नही रह जाती है तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। माँ का स्वरुप भी अत्यंत सुखदायी है तथा वे कमल के पुष्प पर विराजमान रहती हैं। उनकी चार भुजाओं में गदा, चक्र, कमल पुष्प व शंख हैं। माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने से मनुष्य का मन नियंत्रण में रहता है तथा सांसारिक मोह माया से छुटकारा मिलता है।

माँ दुर्गा के ये नौ  रूप जिनकी पूजा नवरात्र के दिनों में की जाती है। माँ का हर रूप भक्तों को अलग-अलग शक्ति व ऊर्जा प्रदान करता है  जिससे हम सभी का उद्धार होता है। इसलिये नवरात्र के प्रत्येक दिन माँ की पूजा करनी चाहिए।