भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। इस व्रत का महत्व करवाचौथ की तरह ही होता है। यह व्रत पति  की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है।  ऐसी मान्यता है कि मां पार्वती ने हरतालिका का व्रत  करके  ही भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत करती है।  हरतालिका तीज व्रत वाले दिन शिव जी और मां पार्वती की पूजा की जाती है।  आखिर में व्रत कथा सुनी जाती है।  माता पार्वती को खीर का भोग लगाया जाता है इस खीर को प्रसाद स्वरूप अपने पति को भी खिलाएं। इससे पति-पत्नी का रिश्ता मजबूत होता है। साथ ही दांपत्य जीवन सुखमय बनता है। हरतालिका तीज के दिन पूजा संपन्न करने के बाद पांच सुहागिन महिलाओं को सुहाग का कोई भी सामान  का दान करें। साथ ही उनसे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद लें। इससे दांपत्य जीवन में खुशियां बनी रहती हैं।

हम हरतालिका तीज क्यों मनाते हैं?

हरतालिका तीज का उत्सव भगवान शिव और देवी पार्वती से जुड़ा हुआ है।हरतालिका तीज के व्रत का महत्व करवा चौथ की तरह ही होता है।  इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और वैवाहिक जीवन में सुख के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। 

हरतालिका तीज कब मनाई जाती है?

हरतालिका तीज भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है। यह आमतौर पर अगस्त – सितम्बर के महीने में ही आती है। इसे गौरी तृतीया व्रत भी कहते है।

हरतालिका तीज व्रत नियम।

  1. हरतालिका व्रत निर्जला किया जाता हैं, अर्थात पूरा दिन एवं रात अगले सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं किया जाता। नये वस्त्र पहनकर पूरा श्रृंगार करती हैं।
  2. हरतालिका व्रत कुवांरी कन्या, सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा किया जाता हैं।
  3. हरतालिका व्रत का नियम है कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता।  इसे प्रति वर्ष पुरे नियमो के साथ किया जाता है ।
  4. हरतालिका व्रत के दिन रतजगा किया जाता है।  पूरी रात महिलायें एकत्र होकर नाच गाना एवम भजन करती है।

हरतालिका  तीज की पूजन सामग्री।

  • फुलेरा विशेष प्रकार से  फूलों से सजा होता
  • घी, तेल, दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर, अबीर, चन्दन, कलश ,नारियल
  • पञ्चअमृत- घी, दही, शक्कर, दूध, शहद।
  • गीली  मिट्टी अथवा बालू रेत, केले का पत्ता
  • सभी प्रकार के फल एवं फूल बेल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, अकाँव का फूल, तुलसी, मंजरी
  • जनेऊ ,  वस्त्र, रक्षासूत्र
  • माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामान जिसमे चूड़ी,सिंदूर,बिछिया, काजल, बिंदी, कंघी, आलता, मेहँदी आदि

हरतालिका तीज पूजन विधि।

  • हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं।  प्रदोष काल अर्थात दिन और  रात के मिलने का समय।
  • हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमा बालू  या रेत अथवा गीली  मिट्टी से हाथों से बनाई जाती है।
  •  पूजा करने की जगह को फूलों की बनी हुई माला (फुलेरा)  से  सजाया जाता है।  उसके भीतर रंगोली बनाकर  उस पर पटा अथवा चौकी रखी जाती है।
  • चौकी पर एक लाल  कपडा  बिछाकर  उस पर थाल रखते है।  उस थाल में केले के पत्ते को रखते है।
  • तीनो प्रतिमा को केले के पत्ते पर बिठाया जाता जाता है।
  • सर्वप्रथम कलश (धातु या मिटटी से बना ) बनाया जाता है। कलश के लिए लोटे या घड़े में जल डालकर  पल्लव रखतें हैं।  
  • पल्लव के ऊपर नारियल रखकर कलश पे रक्षासूत्र बांधकर कलश का पूजन किया जाता है।
  • कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती है।
  • उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती है।
  • फिर  माता गौरी की पूजा की जाती है उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता है।
  • इसके बाद हरतालिका की कथा पढ़ी जाती हैं। फिर आरती की जाती है जिसमे सर्प्रथम गणेश जी कि आरती फिर शिव जी की आरती फिर माता गौरी की आरती की जाती है।
  •  दुसरे दिन सुबह की पूजा के बाद माता गौरा को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं,उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती है ।
  • ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता है।  उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडा जाता है।
  • अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी या कुण्ड में विसर्जित किया जाता है।