ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् |
गायत्री मंत्र का जाप क्यों करना चाहिए?
गायत्री मंत्र को ॐ के जैसे ही हिन्दू धर्म में सबसे उत्तम मंत्र माना गया है, हिन्दू धर्म की मान्यताओ के अनुसार गायत्री मंत्र का जाप करने से आप अपने जीवन में सफलता और खुशी प्राप्त कर सकते हैं। गायत्री मंत्र के नियमित जाप से पुण्य फल में वृद्धि होती है, सभी कार्य सफल होते है तथा व्यक्ति अपने मन को दृढ़ और स्थिर करने में सफल होता है। गायत्री मंतर, जिसे सावित्री मंत्र के रूप में भी जाना जाता है जिसे वेद से लिया गया है ! देवी गायत्री को वेद ग्रन्थ की माता के नाम से भी जाना जाता है, गायत्री मंत्र का वैदिक ग्रंथों में व्यापक रूप से वर्णन किया गया है! भगवान सूर्य की अराधना में गाये जाने वाले इस मंत्र की महर्षि विश्वामित्र ने रचना की थी।
गायत्री मंत्र का जाप कब करना चाहिए?
गायत्री मंत्र का कभी भी जप किया जा सकता है, लेकिन शास्त्रों के अनुसार इसका दिन में तीन बार जाप करना लाभकारी माना जाता है।
१ प्रातः काल (सूर्योदय के समय)।
२ मध्यान्ह (दोपहर को)।
३ सायंकाल (सूर्यास्त से ठीक पहले)।
मंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या |
गायत्री मंत्र के पहले नौ शब्द प्रभु के गुणों की व्याख्या करते हैं…
ॐ = ब्रह्मा भूर = भू-लोक भुवः = अंतरिक्ष स्वः = स्वर्गलोक तत = वह (परमात्मा) सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल वरेण्यं = सबसे उत्तम भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला देवस्य = प्रभु धीमहि = ध्यान धियो = बुद्धि यो = जो नः = हमारी प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना)
गायत्री मंत्र |
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् |
ब्रह्म गायत्री मंत्र |
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । ॐ आपो ज्योति रासोsमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ।।
सर्व शांति हेतु |
।।ॐ भूर्भवः स्वः ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ॐ धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ।।
विद्या प्राप्ति हेतु |
।। ऐं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ऐं धियो यो नः प्रचोदयात् ऐं ।।
लक्ष्मी प्राप्ति हेतु |
।।श्रीं भूर्भवः स्वः श्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि श्रीं धियो यो नः प्रचोदयात् श्रीं।।
कामना सिद्धि हेतु |
।।ह्रीं भूर्भवः स्वः ह्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ह्रीं धियो यो नः प्रचोदयात् ह्रीं ।।
वशीकरण हेतु |
।।क्लीं भूर्भवः स्वः क्लीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि क्लीं धियो यो नः प्रचोदयात् क्लीं।।
शत्रुनाश हेतु |
।।क्रीं भूर्भवः स्वः क्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि क्रीं धियो यो नः प्रचोदयात् क्रीं।।