॥ श्री गणेशाय नमः ॥
प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपापोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी।
दैवयोग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा साहूकार कि स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था! वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। उधर सेही जब अपने मांद में आयी तो अपने बच्चे को मरा हुआ देखकर विलाप करने लगी और ईश्वर से कहने लगी की जिसने भी मेरे बच्चे को मारा है उसको भी मेरे जैसा दुःख प्राप्त हो।
कुछ दिनों बाद साहूकार के बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात् दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। इस प्रकार अपने बच्चों को असमय काल के मुँह में चले जाने से सेठ और सेठानी बहुत दुखी हुए और उन्होंने किसी तीर्थ पर जाकर अपने प्राण त्याग देना ही उचित समझा। इसके बाद वे दोनों घरबार छोड़कर पैदल ही किसी तीर्थ की और चल दिए। बिना कुछ खाये पिए जब तक उनमे कुछ भी शक्ति और साहस रहा तब तक वे चलते ही रहे ,और जब वे पूर्णतः अशक्त हो गए तो मूर्छित हो कर भूमि पर गिर पड़े। उनकी ऐसी दशा देखकर करुणा सागर भगवान् ने उनको मृत्यु से बचने के लिए उनके पापों का अंत कर दिया और तभी आकाशवाणी की कि हे सेठ ! तेरी सेठानी ने मिटटी खोदते समय ध्यान न देकर सेह के बच्चों को मार दिया , जिस कारन तुम्हें भी बच्चों के वियोग का दुःख भोगना पड़ा। अब तुम पुनः घर जाकर गौ माता कि सेवा करोगे और अहोई माता का व्रत पूरे विधि विधान से आरम्भ कर सभी प्राणियों पर दया रखते हुए स्वप्न में भी किसी को कष्ट देने का नहीं सोचोगे तो तुम्हें भगवान् कि कृपा से पुनः संतान का सुख प्राप्त होगा। इस प्रकार आकाशवाणी सुनकर वे दोनों आशावान हुए और भगवती देवी का स्मरण करते हुए अपने घर को चले आये। इसके बाद श्रद्धा भक्ति से न केवल अहोई माता का व्रत किया बल्कि गउ माता कि सेवा करना भी प्रारंभ कर दिया तथा सभी जीवों पर दया भाव रखते हुए क्रोध और द्वेष का सर्वथा परित्याग कर दिया। ऐसा करने के पश्चात् भगवान् कि कृपा से सेठ – सेठानी पुनः सात पुत्रों वाले होकर अगणित पौत्रों सहित संसार में नाना प्रकार के सुखों को भोगने के पश्चात् स्वर्ग को चले गए।