हिन्दू धर्म में रक्षाबंधन का बहुत ही महत्व है । रक्षाबंधन का त्यौहार भाई और बहन के अटूट रिश्ते और उनके बीच के कभी ख़त्म न होने वाले प्यार को दर्शाता है। सावन महीने की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथो में बहुत जगह उल्लेख किया गया है कि देवता भी इस पर्व को बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं । मान्यता है कि सावन महीने की पूर्णिमा के दिन शुभ मुहूर्त में बाँधा गया रक्षासूत्र का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है। इसका प्रभाव तब और भी ज्यादा बढ़ जाता है जब भद्रा काल के बाद या पहले हम राखी बांधते हैं।
बहनो द्वारा अपनी भाइयों की कलाई पर बाँधी गयी राखी के प्रभाव से भाइयों की हर संकटो से निश्चय ही रक्षा होती है , उन्हें देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने की परंपरा का उल्लेख इतिहास और धर्मग्रंथों में भी मिलता है।
शास्त्रों में रक्षा बंधन के संदर्भ में मृत्यु के देवता भगवान यम और उनकी बहन यमुना का एक प्रसंग मिलता है । पौराणिक कथाओं के अनुसार यमराज और यमुना जी भगवान सूर्य देव की संतान है। यमुना जी बहन के रूप में अपने भाई यम से प्यार पाना चाहती थी।कहते हैं इसीलिए यमुना जी ने एक बार यमराज की कलाई पर धागा बांधा था। भगवान यम, यमुना की इस बात से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यमुना की रक्षा का वचन देने के साथ ही यमुना को अमरता का वरदान भी दे दिया। यमराज जी ने अपनी बहन यमुना को यह भी वचन दिया कि जो भी बहन सावन की पूर्णिमा के दिन अपने भाई को शुभ मुहूर्त में रक्षा सूत्र बांधेगी, और भाई अपनी बहन की मदद के लिए वचन देगा, उसका कल्याण होगा, वह उसे लंबी आयु का वरदान देंगे, उससे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा ।
इसी लिए मान्यता है कि जो भी बहन रक्षाबंधन के दिन अपने भाई को प्रेम पूर्वक राखी बाँधती है उसकी सभी आपदाओं से रक्षा होती है।
रक्षाबंधन से जुडी एक दूसरी कथा का उल्लेख विष्णु पुराण में मिलता है। श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर समस्त वेदों को ब्रह्मा जी के लिये फिर से प्राप्त किया था। शास्त्रों में हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
महाभारत के अनुसार महाभारत के युद्द से पहले कौरवो की बड़ी सेना देखकर जब धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं कौरवो की विशाल सेना पर कैसे विजय प्राप्त कर सकता हूँ, सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ तब भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा, युद्द में विजय के लिये रक्षाबन्धन का पर्व मनाने की सलाह दी। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि राखी के इस रेशमी धागे , इस रक्षा सूत्र में वह शक्ति है जिससे आपकी सेना विजयी होती तथा आपलोगो की सभी आपत्तियों से रक्षा होगी। भगवान कृष्ण को राखी बाँधने
महाभारत में ही रक्षाबन्धन से सम्बन्धित कृष्ण और द्रौपदी की एक कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई और खून बहने लगा ,यह देखकर द्रौपदी ने उसी समय अपनी साड़ी को फाड़कर श्रीकृष्ण जी की उँगली पर पट्टी बाँध दी। वह श्रावण मास की पूर्णिमा का ही दिन था। द्रोपदी के इसी स्नेह को देखकर भगवान कृष्ण ने द्रोपदी को उसकी रक्षा का वचन दिया।और यह तो सभी जानतें हैं की किस तरह भगवान कृष्ण ने कौरवों की भरी सभा में द्रौपदी की लाज बचाई थी।
कालांतर में यूनान के मकदूनिया के शासक बादशाह फिलिप का बेटा सिकंदर यूनान से विश्व विजय के लिए चला और भारत आ पहुँचा । वहाँ पर चेनाब नदी के क्षेत्रो में राजा पुरु का शासन था जो बहुत ही महान योद्धा था। सिकन्दर की पत्नी ने राजा पुरु की वीरता और विशाल सेना के बारे में सुनकर अपने पति की रक्षा के लिए राजा पुरू को राखी बाँधकर उन्हें अपना मुँहबोला भाई बनाया और उनसे युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन ले लिया। इतिहासकार कहते है कि युद्ध के दौरान बहन को दिये हुए वचन के सम्मान, और अपने हाथ में बँधी राखी के कारण वीर राजा पुरु ने सिकन्दर को जीवन-दान दे दिया था।
मध्यकाल में रक्षाबंधन का पर्व उत्तर भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाने लगा। इस रेशमी धागे / रक्षासूत्र के प्रति धारणा इतनी बलवती थी कि कहते है कि जब भी राजपूत लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएँ हाथ में रेशमी धागा बाँधकर उनके माथे पर कुमकुम का तिलक लगाती थी। उन्हें विश्वास था कि यह धागा / रक्षासूत्र उनके वीरो को विजय दिलवाकर उन्हें सकुशल वापस ले आयेगा।
मध्यकाल में ही राखीके त्यौहार के साथ एक बहुत प्रसिद्ध कहानी जुड़ी है। कहतें हैं कि राजस्थान के मेवाड़ पर जब बहादुरशाह ने हमला कर दिया उस समय वहाँ पर रानी कर्मावती को जब यह खबर मिली तो वह बहादुरशाह की ताकत के कारण उसके हमले से परेशान हो गयी। तब रानी ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर उनसे मदद माँगी और उनसे अपने राज्य की रक्षा की याचना की। बादशाह हुमायूँ ने मुसलमान होने के बाद भी राखी की लाज निभाई और मेवाड़ में पहुँच कर मेवाड़ की ओर से बहादुरशाह के विरूद्ध लड़ते हुए रानी कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की थी।