भगवान विष्णु ने द्वापरयुग में अपने भक्तों के कल्याण के लिए कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। भगवान कृष्ण बड़े ही दयालु हैं। वैसे तो भगवान कृष्ण की आराधना के लिए बहुत सारे मंत्र और श्लोक हैं, लेकिन चालीसा का पाठ एक सरल माध्यम है भगवान की पूजा के लिए।
|| दोहा || बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम । अरुण अधर जनु बिम्ब फल, नयन कमल अभिराम ॥ पूर्ण इन्द्र अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज । जय मनमोहन मदन छवि, कृष्ण चन्द्र महाराज ॥ ॥ चौपाई ॥ जय यदुनंदन जय जगवंदन । जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥ 1 ॥ जय यशोदा सुत नन्द दुलारे । जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ॥ 2 ॥ जय नटनागर नाग नथइया ॥ कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया ॥ 3 ॥ पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो । आओ दीनन कष्ट निवारो ॥ 4 ॥ वंशी मधुर अधर धरि टेरी । होवे पूर्ण विनय यह मेरी ॥ 5 ॥ आओ हरि पुनि माखन चाखो । आज लाज भारत की राखो ॥ 6 ॥ गोल कपोल चिबुक अरुणारे । मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥ 7 ॥ रंजीत राजिव नयन विशाला । मोर मुकुट वैजन्ती माला ॥ 8 ॥ कुंडल श्रवण पीतपट आछे । कटि किंकणी काछन काछे ॥ 9 ॥ नील जलज सुन्दर तनु सोहै । छवि लखि सुर नर मुनि मन मोहै ॥ 10 ॥ मस्तक तिलक अलक घुंघराले । आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥ 11 ॥ करि पय पान, पूतनहिं तारयो । अका बका कागा सुर मार्यो ॥ 12 ॥ मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला । भये शीतल लखतहिं नंदलाला ॥ 13 ॥ सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई । मूसर धार वारि वर्षाई ॥ 14 ॥ लगत-लगत व्रज चहन बहायो । गोवर्धन नखधारि बचायो ॥ 15 ॥ लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई । मुख मँह चौदह भुवन दिखाई ॥ 16 ॥ दुष्ट कंस अति उधम मचायो ॥ कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥ 17 ॥ नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें । चरणचिन्ह दे निर्भय किन्हें ॥ 18 ॥ करि गोपिन संग रास विलासा । सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥ 19 ॥ केतिक महा असुर संहार्यो । कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो ॥ 20 ॥ मात -पिता की बन्दि छुड़ाई । उग्रसेन कहं राज दिलाई ॥ 21 ॥ महि से मृतक छहों सुत लायो । मातु देवकी शोक मिटायो ॥ 22 ॥ भौमासुर मुर दैत्य संहारी । लाये षट दस सहस कुमारी॥ 23 ॥ दै भीमहिं तृणचीर संहारा । जरासिंधु राक्षस कहं मारा ॥ 24 ॥ असुर बकासुर आदिक मार्यो । भक्तन के तब कष्ट निवार्यो ॥ 25 ॥ दीन सुदामा के दुख टार्यो । तंदुल तीन मुठि मुख डार्यो ॥ 26 ॥ प्रेम के साग विदुर घर मांगे । दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥ 27 ॥ लखी प्रेम की महिमा भारी । ऐसे श्याम दीन हितकारी ॥ 28 ॥ भारत के पारथ रथ हांके । लिये चक्र कर नहिं बल थांके ॥ 29 ॥ निज गीता के ज्ञान सुनाए । भक्तन हृदय सुधा वर्षाए ॥ 30 ॥ मीरा थी ऐसी मतवाली । विष पी गई बजाकर ताली ॥ 31 ॥ राणा भेजा सांप पिटारी । शालीग्राम बने बनवारी ॥ 32 ॥ निज माया तुम विधिहिं दिखायो । उरते संशय सकल मिटायो ॥ 33 ॥ तब शत निन्दा करि तत्काला । जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ॥ 34 ॥ जबहिं द्रौपदी टेर लगाई । दीनानाथ लाज अब जाई ॥ 35 ॥ तुरतहि वसन बने नंदलाला । बढ़े चीर भये अरि मुंह काला ॥ 36 ॥ अस अनाथ के नाथ कन्हैया । डूबत भंवर बचावत नइया ॥ 37 ॥ सुन्दरदास आस उर धारी । दयादृष्टि कीजै बनवारी ॥ 38 ॥ नाथ सकल मम कुमति निवारो । क्षमहुबेगि अपराध हमारो ॥ 39 ॥ खोलो पट अब दर्शन दीजै । बोलो कृष्ण कन्हैया की जय ॥ 40 ॥ "दोहा" यह चालीसा कृष्ण का , पाठ करे उर धारी | अष्ट सिद्धि नवनिद्धि फल ,लहै पदारथ चारि ॥